गणाधिप संकष्टी चतुर्थी: विधि, महत्व और पूजा
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और कथा जानें। भगवान गणेश की कृपा से जीवन के सभी विघ्न दूर करें।
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत होता है। यह दिन विशेष रूप से मार्दशिरा मास में मनाया जाता है और इसे गणाधिप संकष्टी के नाम से जाना जाता है। इस दिन उपवास रखकर, भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं और संकट दूर होते हैं।
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का महत्व
गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है, अर्थात वे सभी बाधाओं को दूर करने वाले हैं। इसलिए किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत उनके पूजन से होती है। गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पर रखा गया व्रत भगवान गणेश की कृपा पाने का एक शुभ माध्यम होता है। इस व्रत को करने से जीवन में सुख, समृद्धि, और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। विवाहित स्त्रियां अपने पति और संतान की दीर्घायु के लिए भी इस व्रत का पालन करती हैं।
पूजा विधि
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सुबह जल्दी उठकर शुद्ध स्नान करें।
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घर और पूजा स्थल की साफ-सफाई करें।
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भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
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दूर्वा, फूल, और तिल के लड्डू या मोदक अर्पित करें।
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"ॐ गं गणपतये नमः" मंत्र का जाप करें।
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संकष्टी चतुर्थी की कथा पढ़ें या सुनें।
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दिनभर उपवास रखें और शाम को चंद्रमा के दर्शन करते हुए अर्घ्य दें।
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चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत तोड़ें।
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व्रत खोलने के बाद हल्का सात्विक भोजन करें।
शुभ मुहूर्त और सलाह
मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि (जैसे 2024 में 18 नवंबर) शाम 6:55 बजे से प्रारंभ होकर अगले दिन शाम तक रहती है। चंद्रमा उदय के समय व्रत का पारण किया जाता है, जो लगभग 7:30 बजे होता है। इस दौरान गणेश चालीसा का पाठ करना लाभकारी माना गया है।
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत श्रद्धा और सच्चे मन से रखने पर भगवान गणेश की असीम कृपा मिलती है। यह व्रत जीवन के सभी संकटों को दूर कर, मनोकामनाएं पूरी करता है और भक्त को सुख-समृद्धि प्रदान करता है। इसलिए इस पावन दिन व्रत एवं पूजा विधि का पालन करना अत्यंत फलदायी होता है।
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