आषाढ़ मास की महिमा | भगवान विष्णु और साधना का विशेष काल
आषाढ़ मास 2025 में भगवान विष्णु की विशेष पूजा, देवशयनी एकादशी, चातुर्मास व गुरु पूर्णिमा का धार्मिक महत्व जानें और करें शुभ अनुष्ठान।

"श्रावणस्य पूर्वे मासे आषाढः पूज्यते हरिः।
स्नानं दानं जपं यज्ञं तद् मासे परमं स्मृतम्॥"
हिंदू पंचांग का चौथा महीना – आषाढ़ मास, धार्मिक दृष्टि से अत्यंत विशेष और शुभ होता है। यह मास न केवल ऋतु परिवर्तन का संकेतक है, बल्कि अध्यात्म, तप, व्रत और भक्ति की दृष्टि से भी विशेष महत्व रखता है। यह समय है आत्मचिंतन, साधना और ईश्वर से गहराई से जुड़ने का।
आषाढ़ मास में भगवान विष्णु की विशेष उपासना
आषाढ़ मास विशेष रूप से भगवान विष्णु को समर्पित माना गया है। इस मास की एकादशी, जिसे देवशयनी एकादशी कहा जाता है, से भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसे ही चातुर्मास का आरंभ भी माना जाता है – एक ऐसा काल जो व्रत, संयम और साधना के लिए सबसे पवित्र माना गया है।
आषाढ़ मास में पूजन, व्रत और दान का महत्व
इस मास में किए गए जप, तप, व्रत, यज्ञ और दान का फल कई गुना अधिक मिलता है। विशेषकर निम्न धार्मिक कार्य इस मास में शुभ माने जाते हैं:
- विष्णु सहस्रनाम का पाठ
- तुलसी पूजा
- गीता पाठ
- ब्राह्मण भोज और अन्नदान
- नदी स्नान व तीर्थ यात्रा
प्रमुख पर्व और तिथियाँ
- गुप्त नवरात्रि – माँ दुर्गा की गुप्त आराधना का विशेष समय
- देवशयनी एकादशी – भगवान विष्णु का शयन काल प्रारंभ
- गुरु पूर्णिमा – गुरु की महिमा को समर्पित पर्व
- चातुर्मास आरंभ – चार मास तक व्रत, संयम और भक्ति का विशेष काल
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आषाढ़ मास वह अवसर है जब प्रकृति भी साधना का संदेश देती है – वर्षा की बूंदों में भक्ति की गहराई होती है, और हर तिथि हमें भीतर झाँकने का अवसर देती है।
आइए, इस पवित्र मास में भगवान विष्णु और गुरु के चरणों में बैठकर, अपने जीवन को अध्यात्म की ओर मोड़ें।
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