गुप्त नवरात्रि का दूसरा दिन: माँ ब्रह्मचारिणी की साधना और महत्व

गुप्त नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना तप, संयम और साधना की शक्ति को जाग्रत करती है। जानिए उनकी पूजा विधि, महत्व, मंत्र और तांत्रिक साधना से जुड़े रहस्य।

गुप्त नवरात्रि का दूसरा दिन: माँ ब्रह्मचारिणी की साधना और महत्व

गुप्त नवरात्रि तांत्रिक और गुप्त साधनाओं के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है। इसमें नौ दिनों तक देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की साधना करके आध्यात्मिक सिद्धि और आंतरिक बल प्राप्त किया जाता है। गुप्त नवरात्रि का दूसरा दिन माँ दुर्गा के दूसरे स्वरूप माँ ब्रह्मचारिणी को समर्पित होता है।

माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप और अर्थ

माँ ब्रह्मचारिणी तप, संयम और साधना की देवी हैं। 'ब्रह्म' का अर्थ है तपस्या और 'चारिणी' का अर्थ है आचरण करने वाली। इस रूप में माँ ने घोर तप करके भगवान शिव को प्राप्त किया था। उनके दाहिने हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमंडल होता है। उनका स्वरूप तेजस्वी, शांत और साधना से परिपूर्ण है।

गुप्त नवरात्रि में माँ ब्रह्मचारिणी की साधना का महत्व

गुप्त नवरात्रि के दौरान माँ ब्रह्मचारिणी की साधना विशेष रूप से सिद्धियों की प्राप्ति, ध्यान की स्थिरता और आत्मबल बढ़ाने के लिए की जाती है। साधक इस दिन:

  • एकांत में रहकर जप व ध्यान करते हैं

  • रात्रि में दीप साधना या तांत्रिक अनुष्ठान करते हैं

  • ब्रह्ममुहूर्त में माँ का ध्यान करके ध्यान चक्र जाग्रत करने का प्रयास करते हैं

गुप्त नवरात्रि में पूजन विधि

  • पूजा से पूर्व स्नान करके शांत मन से आसन ग्रहण करें

  • माँ ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा या चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित करें

  • उन्हें सफेद पुष्प, मिश्री और गंगाजल अर्पित करें

  • मंत्र जाप करें: ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः

  • साधक “स्वेत वस्त्र” पहनकर रुद्राक्ष माला से मंत्र जाप करते हैं

  • गुप्त मंत्रों से तांत्रिक साधना भी इसी दिन प्रारंभ होती है

विशेष लाभ (गुप्त साधकों के लिए)

  • आत्मबल, संयम और मानसिक शांति की प्राप्ति

  • तांत्रिक सिद्धियों की प्राप्ति के लिए उपयुक्त दिन

  • साधना में एकाग्रता और शक्ति की वृद्धि

  • ध्यान और ध्यानचक्र (आज्ञा चक्र) का विकास

  • नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा

पौराणिक कथा

पुराणों के अनुसार, माँ पार्वती ने हजारों वर्षों तक कठिन तपस्या की थी, जिसके कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया। उन्होंने फल, जल और अंत में वायु का भी त्याग किया। उनकी इस महान तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया।

मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
 नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।

गुप्त नवरात्रि में माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना साधक को आत्मबल, ध्यान शक्ति और साधना में सफलता प्रदान करती है। यह दिन उन लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है जो आत्मिक और तांत्रिक मार्ग पर अग्रसर हैं।

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