शीतला अष्टमी 2025: जानें मां मथुरासिनी की पूजा की परंपरा और विशेष पूजा विधि

शीतला अष्टमी 2025: जानें मां मथुरासिनी की पूजा की परंपरा और विशेष पूजा विधि

हर वर्ष चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन माता शीतला की पूजा का विधान है, लेकिन बिहार, झारखंड और ओडिशा के कुछ इलाकों सहित देश के कई शहरों में मां मथुरासिनी की भी भव्य पूजा की जाती है। इस पूजा में कलश स्थापना, मूर्ति प्राण-प्रतिष्ठा, आरती और भंडारे का आयोजन किया जाता है।

मां मथुरासिनी की पूजा विधि
पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। अक्षत से अष्टदल बनाकर मां मथुरासिनी की प्रतिमा स्थापित करें। कलश में जल, गंगाजल, सिक्का, रोली, हल्दी, दूर्वा और सुपारी डालकर स्थापित करें। आम के पत्तों से कलश को ढककर उस पर कलावा बंधा नारियल रखें। मां के समक्ष देसी घी का दीपक और धूपबत्ती जलाकर मंत्र जाप करें। दुर्गा चालीसा और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें, माता की आरती करें और प्रसाद वितरण करें। इस दिन ध्वजारोहण, झंडा तोलन और सामूहिक भोजन का आयोजन किया जाता है। संध्या पूजन के साथ रात्रि जागरण की परंपरा भी निभाई जाती है।

मां मथुरासिनी की पूजा की परंपरा कैसे शुरू हुई?
बिहार के राजगीर में स्वामी हंसदेव मुनि महाराज के सानिध्य में माहुरी समुदाय आध्यात्मिक मार्ग से जुड़ा। उन्होंने माता सिद्धिधात्री के रूप में मां मथुरासिनी देवी के मंदिर की स्थापना की प्रेरणा दी। 1956 में वसंत पंचमी के शुभ मुहूर्त पर गया के मानपुर में मां मथुरासिनी की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हुई। तभी से इस मंदिर में भव्य रूप से मां की पूजा-अर्चना की जाती है। इसके अलावा गिरीडीह, बरबीघा, बिहार शरीफ और मिर्जागंज में भी मां मथुरासिनी के मंदिर स्थित हैं।

शीतला अष्टमी व्रत और भोग
शीतला अष्टमी का पर्व मुख्य रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं अपने बच्चों की सलामती और परिवार की खुशहाली के लिए व्रत रखती हैं। इसे बसौड़ा, बासौड़ा और बसियौरा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलता और माता को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है।

माता शीतला के 5 प्रमुख भोग

  1. मूंग दाल का हलवा – मूंग की दाल को भिगोकर पीस लें और इसे देसी घी और चाशनी में पकाएं। इसमें सूखे मेवे डालकर भोग अर्पित करें।
  2. बिना नमक की पूड़ी – आटे में अजवाइन डालकर गूंथें, पूड़ियां तलें और माता को अर्पित करें। यह प्रसाद जल्दी खराब नहीं होता और स्वादिष्ट भी होता है।
  3. पुए (गुलगुले) – गेहूं के आटे में शक्कर और इलायची पाउडर मिलाकर गाढ़ा घोल बनाएं। गर्म तेल में इसे पकौड़े की तरह तलें और भोग लगाएं।
  4. मीठे चावल – चावल में केसर, इलायची पाउडर, हल्दी, घी, चीनी और ड्राई फ्रूट्स डालकर पकाएं और माता को अर्पित करें।
  5. दही चावल – सादे चावल में दही मिलाकर इसे माता को अर्पित करें। इसे चीनी के साथ भी भोग के रूप में चढ़ाया जा सकता है।

शीतला अष्टमी और मां मथुरासिनी की पूजा भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इन पर्वों को श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाने से परिवार में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।

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