अचला सप्तमी व्रत

अचला सप्तमी व्रत

प्रतिवर्ष माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को अचला सप्तमी का पर्व मनाया जाता है। इसे सूर्य सप्तमी, रथ आरोग्य सप्तमी, सूर्यरथ सप्तमी आदि नामों से भी जाना जाता है। अगर यह सप्तमी रविवार के दिन आती हो तो इसे अचला भानू सप्तमी भी कहा जाता है।

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान सूर्य ने इसी दिन सारे जगत को अपने प्रकाश से अलौकित किया था। इसीलिए इस सप्तमी को सूर्य जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।

क्या है प्रचलित कथा
शास्त्रों में सूर्य को आरोग्यदायक माना गया है और रोग मुक्ति के लिए सूर्य अराधना को उपाय के रुप में बताया गया है। माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी से संबंधित कथा का उल्लेख पुराणों में मिलता है।

कथा के अनुसार भगवान कृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल और सौष्ठव पर अभिमान होने लग गया था। इसी अभिमान के कारण शाम्ब ने दुर्वसा ऋषि का अपमान कर दिया, ऋषि ने क्रोध में शाम्ब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया।

भगवान कृष्ण को ऋषि के श्राप के बारे में पता चला तो उन्होनें अपने पुत्र को सूर्य की आराधना करने के लिए कहा। अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए शाम्ब ने सूर्य आराधना शुरु कर दी जिसके फल के रुप में उसे सूर्य भगवान ने आशीर्वाद दिया।

शाम्ब के सभी कष्टों का अंत हो गया। इसी कारण से सप्तमी के दिन श्रद्धालु सूर्य की आराधना विधिवत करते हैं और सूर्य को प्रसन्न करके आरोग्य, पुत्र, धन और सुख की प्राप्ति करते हैं।

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