कजरी तीज 2025: तिथि, महत्व, व्रत कथा और पूजन विधि

जानिए कजरी तीज 2025 की तिथि, पूजा विधि, महत्व, व्रत कथा और इस पावन पर्व से जुड़ी परंपराएं।

कजरी तीज 2025: तिथि, महत्व, व्रत कथा और पूजन विधि

भारत में सावन माह का विशेष महत्व होता है। इस माह में अनेक व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं, जिनमें से एक प्रमुख व्रत है कजरी तीज। यह व्रत विशेष रूप से उत्तर भारत की सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य के लिए रखा जाता है। यह तीज हरियाली तीज के बाद और गणगौर से पहले आती है।

कजरी तीज 2025 में कब है?

कजरी तीज 2025 में 31 अगस्त, रविवार को मनाई जाएगी। यह व्रत भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को पड़ता है।

कजरी तीज का महत्व

कजरी तीज को बूढ़ी तीज या सातुड़ी तीज भी कहा जाता है। यह व्रत मुख्यतः उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बहुत श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन स्त्रियां निर्जला व्रत रखती हैं और शिव-पार्वती जी की पूजा करके अखंड सौभाग्य की प्राप्ति की कामना करती हैं। इस दिन महिलाएं कजरी गीत गाती हैं, जिसमें वे अपने सास-ससुर, मायके और पति से जुड़ी भावनाएं प्रकट करती हैं।

कजरी तीज व्रत कथा

कजरी तीज की कथा के अनुसार, एक गरीब ब्राह्मण परिवार की महिला ने यह व्रत पूरी श्रद्धा से किया। लेकिन व्रत में उपवास रखने के कारण वह अत्यंत भूखी थी। जब वह फल खा रही थी, तो उसे लगा कि बिना ब्राह्मणों को दान दिए कुछ खाना पाप होगा। उसने वह फल ब्राह्मणों को अर्पित कर दिया। इस त्याग से देवी प्रसन्न हुईं और उसे अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त हुआ।

कजरी तीज पूजन विधि

सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लें। एक साफ स्थान पर मिट्टी की वेदी बनाकर शिव-पार्वती, चंद्रमा, और गौरी माता की मूर्ति स्थापित करें। घी का दीपक जलाएं और फल, फूल, सुहाग की सामग्री अर्पित करें। कजरी तीज की व्रत कथा सुनें। रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करें।

कजरी गीत और परंपरा

कजरी तीज की सबसे बड़ी विशेषता है कजरी गीतों का गायन। महिलाएं समूह में बैठकर ढोलक की थाप पर पारंपरिक लोकगीत गाती हैं, जिनमें प्रेम, विरह और सौंदर्य का चित्रण होता है। ये गीत न केवल धार्मिक भावना को दर्शाते हैं, बल्कि समाज में स्त्रियों की भावनाओं को भी व्यक्त करते हैं।

कजरी तीज नारी शक्ति, प्रेम, समर्पण और आस्था का प्रतीक है। यह केवल व्रत नहीं, बल्कि महिलाओं के आध्यात्मिक बल और सामाजिक संस्कृति को दर्शाता है। इस व्रत को पूरी श्रद्धा और भावना से करें, ताकि देवी गौरी का आशीर्वाद प्राप्त हो और वैवाहिक जीवन सुखमय बना रहे।

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