रथ यात्रा: इतिहास, परंपराएँ और महत्व (Rath Yatra: History, Traditions, and Significance)

रथ यात्रा का पर्व भारत के प्रमुख पर्वों में से एक है और देश भर में इसे काफी श्रद्धा तथा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इसका सबसे भव्य आयोजन उड़ीसा राज्य के जगन्नाथपुरी में देखने को मिलता है। पुरी स्थित जगन्नाथपुरी मंदिर भारत के चार धामों में से एक है। यह भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से भी एक है और यहां भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और उनकी बहन देवी सुभद्रा की पूजा की जाती है।
रथ यात्रा का समय
रथ यात्रा आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आरम्भ होती है। इस दिन भारी संख्या में भक्तगण रथ यात्रा उत्सव में सम्मिलित होने के लिए देश-विदेश से पुरी खिंचे चले आते हैं।
रथ यात्रा क्यों मनाया जाता है?
हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व की उत्पत्ति को लेकर कई पौराणिक और ऐतिहासिक मान्यताएं प्रचलित हैं। एक कहानी के अनुसार राजा इंद्रद्युम्न ने समुद्र में तैरती विशालकाय लकड़ी से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां बनवाने का संकल्प किया, और भगवान स्वयं वृद्ध बढ़ई के रूप में प्रकट होकर मूर्तियों का निर्माण किया।
रथ यात्रा के पीछे की कहानी
रथ यात्रा का आयोजन भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के रथों को खींचने के लिए किया जाता है। यह आयोजन श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर में होता है, जो भारत के चार धामों में से एक है। इस पवित्र यात्रा के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से प्रमुख कथा राजा इंद्रद्युम्न और विश्वकर्मा की है।
रथ यात्रा कैसे मनाया जाता है – रिवाज एवं परंपरा
रथ यात्रा का त्योहार मनाने की शुरुआत जगन्नाथ पुरी से ही हुई है। इसके बाद यह त्योहार पूरे भारत भर में मनाया जाने लगा। जगन्नाथ रथ यात्रा आरंभ होने की शुरुआत में पुराने राजाओं के वंशज पारंपरिक ढंग से सोने के हत्थे वाले झाड़ू से भगवान जगन्नाथ के रथ के सामने झाड़ू लगाते हैं और इसके बाद मंत्रोच्चार के साथ रथयात्रा शुरु होती है।
रथ यात्रा के शुरु होने के साथ ही कई पारंपरिक वाद्ययंत्र बजाये जाते हैं और इसकी ध्वनि के बीच सैकड़ों लोग मोटे-मोटे रस्सों से रथ को खींचते हैं। इसमें सबसे आगे बलभद्र यानी बलराम जी का रथ होता है। इसके थोड़ी देर बाद सुभद्रा जी का रथ चलना शुरु होता है। सबसे अंत में लोग जगन्नाथ जी के रथ को बड़े ही श्रद्धापूर्वक खींचते हैं। रथ यात्रा को लेकर मान्यता है कि इस दिन रथ को खींचने में सहयोग से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
रथ यात्रा की आधुनिक परंपरा
रथ यात्रा का यह पर्व काफी प्राचीन है और इसे काफी समय से पूरे भारत भर में मनाया जा रहा है। पहले के समय संसाधनों की कमी के कारण ज्यादातर दूर-दराज के श्रद्धालु रथ यात्रा के इस पावन पर्व पर नहीं पहुंच पाते थे। लेकिन वर्तमान में तकनीकी विकास ने इसके स्वरुप को भी भव्य बना दिया है। इसके कारण कई सारी दुर्घटनाएं भी देखने को मिलती हैं क्योंकि अब यात्रा के साधनों के कारण पुरी तक पहुंचना काफी आसान हो गया है।
रथ यात्रा का महत्व
दस दिवसीय रथ यात्रा का पर्व भारत के प्रमुख पर्वों में से एक है। इसका भारत के इतिहास में काफी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। पुराणों और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के अवतार जगन्नाथ की रथयात्रा सौ यज्ञों के बराबर है। यहीं कारण है इस रथयात्रा के दौरान देश भर के विभिन्न रथ यात्रा में भारी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होते है और इसके सबसे महत्वपूर्ण स्थान पुरी में तो इस दिन भक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ता है।
प्रसिद्ध रथ यात्रा स्थल
वैसे तो रथ यात्रा के कार्यक्रम देश-विदेश के कई स्थानों पर आयोजित किये जाते हैं। लेकिन इनमें से कुछ रथ यात्राएं ऐसी हैं, जो पूरे विश्व भर में काफी प्रसिद्ध हैं:
- उड़ीसा के जगन्नाथपुरी में आयोजित होने वाली रथयात्रा
- पश्चिम बंगाल के हुगली में आयोजित होने वाली महेश रथ यात्रा
- पश्चिम बंगाल के राजबलहट में आयोजित होने वाली रथ यात्रा
- अमेरिका के न्यू यार्क शहर में आयोजित होने वाली रथ यात्रा
रथ यात्रा का इतिहास
पुरी में रथ यात्रा के इस पर्व का इतिहास काफी प्राचीन है और इसकी शुरुआत गंगा राजवंश द्वारा सन् 1150 इस्वी में की गई थी। यह पर्व पूरे भारत भर में पुरी की रथयात्रा के नाम से काफी प्रसिद्ध हुआ। इसके साथ ही पाश्चात्य जगत में यह पहला भारतीय पर्व था, जिसके विषय में विदेशी लोगो को जानकारी प्राप्त हुई। इस त्योहार के विषय में मार्को पोलो जैसे प्रसिद्ध यात्रियों ने भी अपने वृत्तांतों में वर्णन किया है।
यह ब्लॉग रथ यात्रा के महत्व, इतिहास, परंपराओं और इसके पीछे की कहानियों को समर्पित है। इस पवित्र यात्रा को समझना और उसके विभिन्न पहलुओं को जानना भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्थाओं को और भी अधिक सुदृढ़ करता है।
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