रोहिणी व्रत: महत्व, पूजा विधि और कथा

रोहिणी व्रत जैन समुदाय का प्रमुख व्रत है, जो पति की दीर्घायु, परिवार की सुख-शांति और समृद्धि के लिए रखा जाता है। जानें इसकी पूजा विधि, नियम और प्रेरणादायक कथा।

रोहिणी व्रत: महत्व, पूजा विधि और कथा

रोहिणी व्रत एक बहुत ही पावन व्रत है, जिसे मुख्यतः जैन समुदाय में महिलाएँ अपने पति की लंबी आयु, परिवार की सुख-शांति, और समृद्धि के लिए करती हैं। यह व्रत हर महीने रोहिणी नक्षत्र के दिन रखा जाता है और इसका संबंध माता रोहिणी से बताया गया है। इस दिन व्रत रखने से जीवन की बाधाएँ दूर होती हैं और व्यक्ति को कर्म बंधन से मुक्ति मिलती है।

रोहिणी व्रत का महत्व

  • रोहिणी व्रत का पालन करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बढ़ती है।

  • संतान सुख, स्वास्थ्य लाभ, और दांपत्य जीवन में मधुरता आती है।

  • मानसिक शांति, आत्मिक उन्नति और ग्रह दोषों से मुक्ति मिलती है।

  • जैन धर्म में इसे त्योहार के समान माना जाता है और स्त्री-पुरुष दोनों ही यह व्रत कर सकते हैं।

व्रत की विधि

  • प्रातः स्नान करके साफ वस्त्र पहन लें। फिर पूजा स्थल पर माता रोहिणी की प्रतिमा स्थापित करें।

  • व्रत कथा पढ़ें या सुनें और भगवान वासुपूज्य की आराधना करें।

  • दिन भर अन्न या फलाहार का सेवन करें, तामसिक भोजन जैसे मांस, मदिरा, लहसुन और प्याज से दूर रहें।

  • पूरा दिन ब्रह्मचर्य और पवित्रता का पालन करें, मन-वचन-कर्म से शुद्धता बनाए रखें।

  • सप्ताह, तीन, पाँच, या सात साल तक इस व्रत का पालन करना श्रेयस्कर मान जाता है। मुख्य रूप से पाँच साल-पाँच महीने की अवधि को श्रेष्ठ माना जाता है।

  • व्रत का समापन उद्दापन अनुष्ठान से करें, धन्यवाद ज्ञापन के साथ।

व्रत कथा (संक्षिप्त)

चंपापुरी नगर के राजा माधवा, रानी लक्ष्मीपति और उनकी पुत्री रोहिणी की कथा इस व्रत से जुड़ी है। राजा ने अपनी पुत्री के विवाह के लिए निमित्तज्ञानी से परामर्श लिया, जिन्होंने बताया कि उसकी पुत्री का विवाह हस्तिनापुर के राजकुमार अशोक से होगा। रोहिणी का स्वभाव काफी शांत था, जिसका रहस्य मुनिराज श्रीचारण ने प्राचीन काल की कथा सुनाकर बताया। दरअसल, दुर्गंधा नामक कन्या के जन्म से जुड़ी घटनाओं ने रोहिणी के मौन स्वभाव का कारण स्पष्ट किया। कथा पढ़ने और सुनने से जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं।

विशेष नियम

  • व्रत के दिन दूसरों की मदद करें और दान करें।

  • झूठ, छल-कपट और नकारात्मक विचारों से दूर रहें; सदैव सकारात्मक सोच रखें।

  • व्रत के संपन्न होने पर परिवार व समाज के हितार्थ पूजा-अर्चना करें।

रोहिणी व्रत जैन धर्म के अलावा अन्य धार्मिक समुदायों में भी श्रद्धा व समर्पण के साथ मनाया जाता है। यह व्रत व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति, समृद्धि, और मानसिक संतुलन लाने वाला है।

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