विश्वेश्वर व्रत: भगवान शिव की कृपा पाने का पवित्र व्रत
विश्वेश्वर व्रत भगवान शिव को समर्पित पवित्र उपवास है, जो जीवन में सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य लाने का साधन है। जानिए व्रत कथा, विधि और महत्व।
विश्वेश्वर व्रत भगवान शिव के एक प्रसिद्ध रूप, विश्वेश्वर या विश्वनाथ को समर्पित है। यह व्रत कार्तिक मास के भीष्म पंचक के तीसरे दिन, प्रदोष व्रत के दिन मनाया जाता है। इस व्रत में उपवास और पूजा-अर्चना करके भक्त भगवान शिव से सुख-शांति और समृद्धि की कामना करते हैं।
व्रत की पौराणिक कथा
प्राचीन काल में कुथार राजवंश के शूद्र राजा कुंडा ने भार्गव मुनि को अपने राज्य में आमंत्रित किया। मुनि ने मंदिर और पवित्र नदियों के अभाव के कारण निमंत्रण ठुकरा दिया। राजा द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ किया गया और भगवान शिव ने यलुरु श्री विश्वेश्वर रूप में प्रकट होकर दर्शन दिए। इस व्रत का पालन करने से जीवन के सारे कष्ट दूर होते हैं और निरोगी तन-पोषण होता है।
व्रत की विधि
-
प्रातः जल्दी उठकर शुद्ध स्नान करें।
-
शिवलिंग की दूध, जल, बिल्वपत्र से पूजा करें।
-
रुद्राभिषेक करें और भगवान से अपने जीवन की समस्याओं के समाधान की प्रार्थना करें।
-
संकल्प करके दिनभर उपवास रखें और अगले दिन हल्का भोजन करें।
महत्व और लाभ
विश्वेश्वर व्रत से भगवान शिव की विशेष कृपा मिलती है। यह व्रत विवाह में बाधा, संतान प्राप्ति, व्यापार व नौकरी में सफलता के लिए फलदायक है। भक्तों का मानसिक शांति प्राप्त होती है और वे जीवन में सुख-समृद्धि का आनंद उठाते हैं।
विश्वेश्वर व्रत भगवान शिव के भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह व्रत प्रेम, श्रद्धा और आध्यात्मिक समर्पण का शुभ अवसर है, जो जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और आशीर्वाद लाता है।
What's Your Reaction?