अशोक अष्टमी 2025: तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

अशोक अष्टमी 2025: तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

अशोक अष्टमी, हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के लिए विशेष रूप से समर्पित होता है। साथ ही, इस दिन पवित्र अशोक वृक्ष की पूजा करने की भी परंपरा है। अशोक वृक्ष को दुखों का अंत करने वाला माना जाता है, और इसका नाम भी इसी कारण से पड़ा – 'अशोक' यानी 'जो शोक को हर ले'। वर्ष 2025 में अशोक अष्टमी का पर्व 5 अप्रैल, शनिवार को मनाया जाएगा।

अशोक अष्टमी 2025: तिथि और समय

  • अष्टमी तिथि आरंभ: 4 अप्रैल 2025, सुबह 08:13 बजे

  • अष्टमी तिथि समाप्त: 6 अप्रैल 2025, शाम 07:26 बजे

  • अशोक अष्टमी तिथि: 5 अप्रैल 2025, शनिवार

  • प्रातः संध्या मुहूर्त: सुबह 04:58 से 06:07 तक

  • अभिजीत मुहूर्त: 11:59 AM से 12:49 PM तक

अशोक अष्टमी का धार्मिक महत्व

अशोक अष्टमी का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त करने से पूर्व भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने उन्हें आशीर्वाद दिया, जिससे वे अगली ही सुबह रावण का वध करने में सफल हुए। इस कारण इस दिन को अत्यंत शुभ और सिद्धिदायक माना गया है।

पूर्वी भारत, विशेष रूप से ओडिशा में, अशोक अष्टमी बड़े उत्सव के रूप में मनाई जाती है। भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर इस दिन विशेष आयोजन करता है। दक्षिण भारत में भी यह पर्व सांस्कृतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

अशोक अष्टमी 2025: पूजा विधि

इस दिन प्रातःकाल उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें। शिवलिंग पर जल, दूध और अशोक वृक्ष की पत्तियां अर्पित करें। अशोक वृक्ष की जड़ों में गंगाजल और कच्चा दूध चढ़ाना पुण्यदायी होता है।

इसके बाद, वृक्ष की सात परिक्रमा करते हुए उसे सूत या लाल धागे से लपेटें। फिर वृक्ष पर कुमकुम और अक्षत अर्पित करें और धूप-दीप जलाकर आरती करें। इस दिन रामायण का पाठ करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है। अंत में वृक्ष को मीठा भोग अवश्य अर्पित करें।

अशोक अष्टमी व्रत कथा

रामायण के अनुसार जब रावण माता सीता का हरण कर उन्हें लंका ले गया था, तब माता सीता ने अशोक वाटिका में अशोक वृक्ष के नीचे समय बिताया था। यहीं भगवान हनुमान उनसे मिलने आए थे और भगवान राम का संदेश दिया था। इसी वृक्ष ने माता सीता को सांत्वना और शक्ति दी थी, जिससे उनकी आशा बनी रही और अंततः मुक्ति संभव हुई।

एक अन्य कथा के अनुसार अशोक वृक्ष भगवान शिव के आंसुओं से उत्पन्न हुआ था, जैसे रुद्राक्ष। जब रावण ने शिव तांडव स्तोत्र का पाठ किया तो भगवान शिव ने तांडव किया, जिससे दो आंसू पृथ्वी पर गिरे और वहीं से अशोक वृक्ष की उत्पत्ति हुई।

अशोक अष्टमी का पर्व भक्तों के लिए एक ऐसा अवसर है, जब वे अपने जीवन के दुखों से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव, माता पार्वती और अशोक वृक्ष की पूजा करते हैं। यह दिन आस्था, श्रद्धा और शक्ति का प्रतीक है। यदि श्रद्धापूर्वक व्रत और पूजा की जाए तो यह पर्व जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है।

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