गोवत्स द्वादशी: गाय और उसके बछड़े की पूजा का पावन पर्व

गोवत्स द्वादशी 2025: गौ माता और बछड़े की पूजा, व्रत विधि और धार्मिक महत्व। संतान सुख और परिवार की समृद्धि का शुभ त्योहार।

गोवत्स द्वादशी: गाय और उसके बछड़े की पूजा का पावन पर्व

गोवत्स द्वादशी हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण धार्मिक त्यौहार है। यह पर्व खासकर गाय और उनके बछड़ों के प्रति श्रद्धा एवं आभार व्यक्त करने के लिए समर्पित है। इसे बछ बारस, वासु बारस, नंदिनी व्रत और वत्स द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से संतान की लंबी उम्र, परिवार की समृद्धि और सुख-शांति की कामना से मनाया जाता है।

त्योहार का धार्मिक महत्व

गोवत्स द्वादशी का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि गाय को हिंदू धर्म में माँ के समान माना जाता है। गाय और उसके बछड़े की सेवा और पूजा करने से शुभ फल मिलता है। यह माना जाता है कि इस व्रत को रखने से संतान सुख की प्राप्ति होती है, बच्चों की आयु बढ़ती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। पौराणिक कथाओं में गोवत्स द्वादशी का उल्लेख राजा उत्‍तानपाद और उनकी पत्नी सुनीति के पुत्र ध्रुव के जन्म के संदर्भ में मिलता है। इस दिन विधिवत पूजा करने से सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं और जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।

पूजा की विधि

  • सुबह उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और संकल्प लें कि गौ माता और बछड़े की पूजा श्रद्धा से करेंगे।

  • घर में मौजूद गाय और बछड़े को धोकर साफ करें। यदि स्थानी गाय-बछड़ा न हो तो मिट्टी या चित्र रूप में भी पूजा की जा सकती है।

  • गौ माता और बछड़े को हल्दी, रोली का तिलक लगाएं और पुष्प माला पहनाएं।

  • उन्हें हरी घास, चने की दाल, अंकुरित मूंग या अन्य पौष्टिक भोजन खिलाएं।

  • पूजा स्थल पर दीपक जलाएं, धूप बूंदें दिखाएं और आरती करें।

  • गोवत्स द्वादशी की कथा सुनें या पाठ करें, जिससे धार्मिक भावना और शक्ति की वृद्धि होती है।

  • व्रत का पारण अगले दिन गौ पूजा के बाद करें।
    -व्रत के दिन गेहूं, चावल, दूध और दूध से बनी वस्तुओं का सेवन नहीं करते, किन्तु फल, भैंस का दूध और अन्य सादे भोजन कर सकते हैं।​

गोवत्स द्वादशी की कथा

पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि भगवान कृष्ण ने वृंदावन के लोगों को गौ पूजा करने का निर्देश दिया था, जिससे पापों का नाश होता है और शुभ फल प्राप्त होता है। गौ माता के प्रति प्रेम और सेवा से मनुष्य जीवन में समृद्धि, ज्ञान और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इसी कारण यह व्रत और पूजा विधि अत्यंत शुभ मानी जाती है.

गोवत्स द्वादशी न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह गौमाता के प्रति सम्मान, परिवार की खुशहाली और प्रकृति की रक्षा का प्रतीक भी है। दिवाली के पर्व की पूर्व संध्या पर मनाया जाने वाला यह त्योहार जीवन में प्रेम, सम्मान और समृद्धि की भावना को जगाता है। इस दिन श्रद्धा पूर्वक जागरूक होकर गौ माता और उसके बछड़ों की पूजा करने से सभी परिवारजनों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।​

इस प्रकार, गोवत्स द्वादशी भारतीय परंपरा और संस्कृति में एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो हमें प्रकृति और जीवन के ऊपर अपना कर्तव्य और प्रेम सिखाता है।

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