पापमोचनी एकादशी व्रत
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पाप मोचनी एकादशी कहते है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी पापों को नष्ट करने वाली होती है। स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने इसके फल एवं प्रभाव को अर्जुन के समक्ष प्रस्तुत किया था। पापमोचनी एकादशी व्रत साधक को उसके सभी पापों से मुक्त कर उसके लिए मोक्ष के मार्ग खोलती है। इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है।
पापमोचनी एकादशी एकादशी व्रत कथा -
प्राचीन समय में चैत्ररथ नामक एक वन था। उसमें अप्सराएँ किन्नरों के साथ विहार किया करती थीं। वहाँ सदैव वसन्त का मौसम रहता था, अर्थात उस जगह सदा नाना प्रकार के पुष्प खिले रहते थे। कभी गन्धर्व कन्याकएँ विहार किया करती थीं, कभी देवेन्द्र अन्य देवताओं के साथ क्रीड़ा किया करते थे।
उसी वन में मेधावी नाम के एक ऋषि भी तपस्या में लीन रहते थे। वे शिवभक्त थे। एक दिन मञ्जुघोषा नामक एक अप्सरा ने उनको मोहित कर उनकी निकटता का लाभ उठाने की चेष्टा की, इसलिए वह कुछ दूरी पर बैठ वीणा बजाकर मधुर स्वर में गाने लगी। उसी समय शिव भक्त महर्षि मेधावी को कामदेव भी जीतने का प्रयास करने लगे। कामदेव ने उस सुन्दर अप्सरा के भ्रू का धनुष बनाया। कटाक्ष को उसकी प्रत्यन्चा बनाई और उसके नेत्रों को मञ्जुघोषा अप्सरा का सेनापति बनाया। इस तरह कामदेव अपने शत्रुभक्त को जीतने को तैयार हुआ। उस समय महर्षि मेधावी भी युवावस्था में थे और काफी हृष्ट-पुष्ट थे। उन्होंने यज्ञोपवीत तथा दण्ड धारण कर रखा था। वे दूसरे कामदेव के समान प्रतीत हो रहे थे। उस मुनि को देखकर कामदेव के वश में हुई मञ्जुघोषा ने धीरे-धीरे मधुर वाणी से वीणा पर गायन शुरू किया तो महर्षि मेधावी भी मञ्जुघोषा के मधुर गाने पर तथा उसके सौन्दर्य पर मोहित हो गए। वह अप्सरा मेधावी मुनि को कामदेव से पीड़ित जानकर उनसे आलिङ्गन करने लगी।
अप्सरा की बात सुनकर ऋषि ने कहा-
मञ्जुघोषा ने एक दिन ऋषि से कहा-
मुनि ने इस बार भी वही कहा-
मुनि की बात सुन अप्सरा ने कहा-
मुनि के क्रोधयुक्त शाप (श्राप) से वह अप्सरा पिशाचिनी बन गई। यह देख वह व्यथित होकर बोली-
च्यवन ऋषि ने अपने पुत्र मेधावी को देखकर कहा-
मेधावी मुनि ने लज्जा से अपना सिर झुकाकर कहा-
ऋषि ने कहा-
पाप मोचनी एकादशी व्रत विधि -
- इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है।
- इस व्रत में व्रती को दशमी तिथि को एक बार सात्विक भोजन करना चाहिए और मन से भोग विलास की भावना को निकालकर भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
- एकादशी के दिन सूर्योदय होते ही स्नान करके व्रत का संकल्प करना चाहिए। संकल्प के उपरान्त श्री विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
- पूजा के पश्चात भगवान के समक्ष बैठकर भग्वद् कथा का पाठ अथवा श्रवण करना चाहिए।
- एकादशी तिथि को जागरण करने से कई गुणा पुण्य मिलता है। इसलिए रात में भी निराहार रहकर भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें।
- द्वादशी के दिन प्रात: स्नान करके विष्णु भगवान की पूजा करें और फिर ब्रह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें। इसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए।
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