अहोई अष्टमी: माताओं का व्रत, संतान की रक्षा और आशीर्वाद
अहोई अष्टमी 2025 पर माताएं संतान की लंबी आयु, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। जानिए इस व्रत की तिथि, पूजा विधि, कथा और शुभ मुहूर्त की पूरी जानकारी।

अहोई अष्टमी का महत्त्व
अहोई अष्टमी कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाने वाला विशेष व्रत है। यह व्रत मुख्यतः माताएँ अपनी संतान की लंबी आयु, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना के लिए रखती हैं। इसे अहोई माता के प्रति गहरी श्रद्धा और आस्था के साथ आयोजित किया जाता है।
पौराणिक कथा
अहोई अष्टमी की कथा एक मातृत्व की भावनाओं से जुड़ी हुई है। एक बार एक महिला ने गलती से शेर के बच्चों को नुकसान पहुंचाया था, जिससे उसे अपने बच्चों का नुकसान उठाना पड़ा। अत्यंत पश्चाताप करते हुए उसने माता अहोई की कठोर तपस्या की, जिससे उसकी संतान ठीक हो गई। यही कथा इस व्रत के पीछे की गहरी धार्मिक भावना को दर्शाती है।
व्रत की विधि
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व्रत की सुबह स्नान करके अहोई माता का चित्र या मूरत बनाएं।
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पूजा में सात छोटे-छोटे बच्चों के प्रतीक भी बनाए जाते हैं।
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दिन भर निर्जला उपवास रखें।
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संध्या के समय तारे देखने के बाद माता का पूजन करें और पूजन सामग्री जैसे जल, दीपक, रोली, अक्षत, और फूल चढ़ाएं।
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पूजा के बाद व्रत खोलें।
अहोई माता की आरती और भक्ति
पूजा के दौरान अहोई माता की आरती करें और भक्ति गीत गाएं। इससे मन की शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है।
आधुनिक संदर्भ में अहोई अष्टमी
आज भी यह व्रत परिवारों में गहरे सम्मान और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। शहरों और गांवों में माताएँ अपने बच्चों की खुशहाली और स्वास्थ्य के लिए इस व्रत को निभाती हैं, जिससे मातृत्व का स्नेह और आस्था बनी रहती है।
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