Vikat Sankashti Chaturthi 2025: विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत आज, जानिए महत्व, पूजा विधि, मुहूर्त और चंद्रोदय का समय

Vikat Sankashti Chaturthi 2025: विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत आज, जानिए महत्व, पूजा विधि, मुहूर्त और चंद्रोदय का समय

विकट संकष्टी चतुर्थी 2025 आज
विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन विध्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा अर्चना विधि विधान से की जाती है। मान्यता है कि इस व्रत को रखने और चंद्रमा को अर्घ्य देने से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि का आगमन होता है।

व्रत का महत्व
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार विकट संकष्टी चतुर्थी पर व्रत रखने से भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त होती है। नारद पुराण में वर्णित है कि इस दिन चंद्रमा और बुध से जुड़े दोषों का निवारण होता है। यह व्रत मानसिक और शारीरिक कष्टों से राहत दिलाता है और परिवार में सुख-शांति और सौभाग्य लाता है। भगवान गणेश बुद्धि और शुभता के प्रतीक हैं, इसलिए उनकी पूजा जीवन में सकारात्मक बदलाव लाती है।

पूजा का शुभ मुहूर्त और योग
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:26 एएम से 05:11 एएम
विजय मुहूर्त: दोपहर 02:31 पीएम से 03:22 पीएम
शाम की पूजा: 06:20 पीएम से 08:06 पीएम (अमृत काल)
इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग का संयोग भी बन रहा है, जिससे पूजा का फल और अधिक प्रभावशाली माना गया है।

विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत और पूजा विधि
ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके साफ वस्त्र पहनें और उपवास का संकल्प लें।
पूजा स्थान की सफाई करके एक चौकी पर लाल या पीले कपड़े बिछाकर गणेशजी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
एक साबुत सुपारी भी रखें, जिसे गणेशजी का प्रतीक मानकर पूजन करें।
गणेशजी को पंचामृत से स्नान कराएं और गंगाजल से शुद्ध करें।
सिंदूर, अक्षत, चंदन, फल, फूल, दूर्वा, जनेऊ आदि अर्पित करें।
घी का दीपक और कपूर जलाकर आरती करें और गणेश चालीसा का पाठ करें।
रात में चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अर्घ्य दें।
अगले दिन व्रत का पारण करें।

चंद्रोदय का समय
इस बार विकट संकष्टी चतुर्थी पर चंद्रमा रात लगभग 10 बजे दिखाई देगा। इस समय चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए जल, दूध, गंगाजल और सफेद फूल मिलाकर एक पात्र में रखें और चंद्रमा को नमस्कार करते हुए अर्घ्य अर्पित करें।

गणेशजी की आरती
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी। माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥
पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा। दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी॥
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी॥

विकट संकष्टी चतुर्थी का पर्व श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है। इस दिन उपवास और पूजा करने से भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है और सभी संकटों का नाश होता है।

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