वरूथिनी एकादशी हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह एकादशी विशेष रूप से धर्म, भक्ति और आत्मशुद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। वरूथिनी का अर्थ होता है – "रक्षा करने वाली", अतः इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और वह ईश्वर की कृपा से सुरक्षित रहता है।
वरूथिनी एकादशी की पौराणिक कथा
पद्म पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को वरूथिनी एकादशी का महत्व बताया। उन्होंने कहा कि एक बार नर्मदा नदी के किनारे मांडाता नामक राजा तपस्या कर रहा था। एक दिन अचानक एक जंगली भालू आया और उसके पैर को काटने लगा। राजा ने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की। भगवान ने प्रकट होकर भालू से राजा को मुक्त किया और कहा कि उसके कर्मों का फल था यह कष्ट, लेकिन वरूथिनी एकादशी का व्रत करने से वह अगले जन्म में सभी दोषों से मुक्त हो जाएगा।
व्रत विधि
एक दिन पूर्व (दशमी) से ही सात्विक भोजन ग्रहण करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान करके भगवान विष्णु का पूजन करें।
पीले वस्त्र पहनें और व्रत का संकल्प लें।
तुलसी पत्र, फल, पंचामृत से भगवान का अभिषेक करें।
विष्णु सहस्त्रनाम या गीता पाठ करें।
रात्रि जागरण करें और "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें।
अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मणों को भोजन और दान देने के बाद व्रत का पारण करें।
वरूथिनी एकादशी का महत्त्व
इस व्रत को करने से व्यक्ति को चातुर्मास व्रत, दान, यज्ञ, और तीर्थ यात्राओं जितना फल मिलता है।
यह एकादशी पापों का नाश करने वाली और मोक्ष प्रदान करने वाली मानी जाती है।
व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
वरूथिनी एकादशी आत्मशुद्धि, संयम और भक्ति का अनुपम संगम है। इस दिन का व्रत न केवल हमारे कर्मों को शुद्ध करता है, बल्कि हमें भगवान के चरणों में स्थायी स्थान पाने का मार्ग भी प्रदान करता है। आइए इस पावन दिन पर उपवास और भक्ति के माध्यम से अपने जीवन को और भी दिव्य बनाएं। "हरि बोल! श्रीहरि का स्मरण ही जीवन का सार है।"