प्रदोष व्रत 2025: तारीख, मुहूर्त और योग
प्रदोष व्रत 2025 कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी 18 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा से सुख, समृद्धि और मनोकामना पूर्ण होती है।

प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि को भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत मनाया जाता है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत इस वर्ष 18 अक्टूबर 2025 को होगा। यह व्रत विशेष रूप से शिव और माता पार्वती की पूजा के लिए रखा जाता है, जो जीवन की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति और संकटों के नाश का प्रमुख उपाय माना जाता है।
प्रदोष व्रत की तिथि और समय
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त्रयोदशी तिथि की शुरुआत: 18 अक्टूबर 2025, दोपहर 12:18 बजे
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तिथि का अंत: 19 अक्टूबर 2025, दोपहर 1:51 बजे
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प्रदोष व्रत का मुख्य पूजा समय (प्रदोष काल): शाम 5:48 बजे से रात 8:20 बजे तक
इस अवधि में भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा विधिवत रूप से की जाती है।
प्रदोष व्रत का धार्मिक महत्व
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यह व्रत देवों के देव भगवान शिव को समर्पित है और उनके प्रति भक्तिवान साधकों द्वारा रखा जाता है।
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प्रदोष व्रत रखने से जीवन के कष्ट और बाधाएं दूर होती हैं और सुख-संपत्ति में वृद्धि होती है।
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कार्तिक मास के प्रदोष व्रत पर विशेष योग बनते हैं, जैसे इस वर्ष शिववास योग और अभिजीत मुहूर्त का शुभ संयोग, जो पूजा के फल को दोगुना बढ़ा देते हैं।
प्रदोष व्रत के नियम
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व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है।
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इस दिन सूर्योदय से तिथि गणना की जाती है, परन्तु पूजा के लिए संध्या बेला (प्रदोष काल) का खास महत्व होता है।
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व्रत के दिन उपवास रखकर शाम प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा, जलाभिषेक, और षोडशोपचार पूजा विधि से की जाती है।
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पूजा के दौरान शिव तांडव स्तोत्र और अन्य मंत्रों का पाठ करने से अधिक शुभ फल प्राप्त होता है।
शनि प्रदोष व्रत विशेष
अक्टूबर महीने में दो प्रदोष व्रत आते हैं, पहला शुक्ल पक्ष का और दूसरा कृष्ण पक्ष का। 18 अक्टूबर को पड़ने वाला प्रदोष व्रत शनिवार के दिन होने के कारण शनि प्रदोष भी कहलाता है। शनि प्रदोष व्रत करने से शनि दोष समाप्ति, संतान सुख, और आरोग्य लाभ होता है।
पंचांग विवरण
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सूर्योदय: सुबह 6:24 बजे
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सूर्यास्त: शाम 5:48 बजे
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ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:43 से 5:33 बजे तक
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विजय मुहूर्त: दोपहर 2:00 से 2:46 बजे तक
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प्रदोष काल (पूजा के लिए शुभ काल): शाम 5:48 से रात 8:20 बजे तक
प्रदोष व्रत 2025 मनाने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जो जीवन में खुशहाली, स्वास्थ्य और समृद्धि लाता है। इस दिन की गई पूजा से साधक के कष्ट मिटते हैं और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। इसलिए 18 अक्टूबर के प्रदोष व्रत को विशेष श्रद्धा से मनाएं और शुभ मुहूर्त में पूजा-अर्चना करें।
यह व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करता है। यह दिवाली के शुभ अवसर के पहले आने वाला व्रत भी होता है, जो समृद्धि के साथ अगला पर्व मनाने की शुरुआत करता है।
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